छोटे छोटे सवाल –१३
राजेश्वर ठाकुर। -यस। -ठाकुर ने न 'सर' लगाया, न 'प्लीज़' । हथौड़े जैसा 'यस' पवन बाबू के सिर पर दे मारा। पवन बाबू सहसा हाजिरी लेते लेते ठिठके और चश्मे में से दोनों आँखें उसकी ओर धमकाई, फिर और सबको उँगलियों पर गिनते हुए बोले, "सब प्रिजेंट हैं।" पवन बाबू हाजिरी लेकर चलने को हुए तो श्रोत्रिय ने पुकारकर कहा, "मास्साहब, एक मिनट। अँऽऽ, कुल कितने कैंडीडेट बुलाए गए हैं असिस्टैंट टीचरी के लिए ?" "जितने यहाँ प्रिजेंट हैं।" पवन बाबू ने ऐनक को ऊपर उठाते हुए कहा। "क्या इतने ही लोगों ने एप्लाइ किया था?" केशव ने फिर पूछा। दरअसल श्रोत्रिय और केशव यह जानना चाहते थे कि इंटरव्यू के लिए कैंडीडेट्स को किस आधार पर बुलाया गया है। "एप्लाइ तो पचासियों ने किया था।" पवन बाबू बेरुखी से बोले। "तो फिर इंटरव्यू के लिए लोगों को किस आधार पर बुलाया गया है ?" श्रोत्रिय ने सीधा-सा सवाल किया। "ये बातें आप कमेटी के मेम्बरों से पुछिएगा।" पवन बाबू ने उसी बेरुखी से कहा और एक क्षण रुककर बोले, "श्री सते वरत !"
सत्यव्रत इन लोगों की बातचीत में खोया था। अपना नाम सुना तो तुरन्त उठकर खड़ा हो गया। पवन बाबू ने उसे अपने पीछे आने का इशारा किया और बराबरवाले प्रिंसिपल के कमरे की ओर चल दिए, जहाँ कमेटी के सदस्य बैठे हुए थे। पवन बाबू के जाने के बाद राजेश्वर बोला, "साला अब कैंडे पर आया। हम तो 'यस प्लीज़' और 'यस सर' कहें, और वे हमारे नाम के साथ 'श्री' या 'मिस्टर' तक नहीं लगा सकता।" असरार, जो राजपुर का ही रहनेवाला था, बोला, "बड़ा जलैहंडा है। उत्तमचन्द का खास गुर्गा है यह। हर साल प्रिंसिपल को निकलवा देता है उससे मिलकर।" "अच्छा !" श्रोत्रिय ने पूछा, "आजकल प्रिंसिपल कौन है?" "उत्तमचन्द ही ऑफीशिएट' कर रहा है।" असरार बोला, "प्रिंसिपल की तलाश है।" "तलाश-वलाश की बात नहीं है," राजेश्वर ने कहा, "उपप्रधानजी का छोटा लड़का इस साल बी.टी. में दाखिला ले रहा है। देख लेना, बी.टी. करते ही प्रिंसिपल न हो जाए तो!" “मगर रूल्स के हिसाब से तो कमेटी के मेम्बर का कोई रिश्तेदार कॉलेज में नौकरी नहीं कर सकता।" केशव बोला। राजेश्वर हँस दिया। पाठक ने कहा, "छोड़ो यार, रूल्स-वूल्स में क्या रखा है।"